Tuesday, November 17, 2009

झुकती है दुनियां, झुकाने वाला चाहिए

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा क्या लिजलिजे राष्ट्रपति हैं ? क्या उन्हें अमेरिका के राष्ट्रीय गौरव का ध्यान नहीं है? क्या उन्हें अमेरिका की परंपरा का पता नहीं है जिसमें अमरीकी नेतृत्व ने दुनिया में किसी के सामने झुकना नहीं सीखा।

हल्ला मच गया है अमेरिका में। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जापान के सम्राट अकिहितो के सामने 'शिष्टाचारवश' सर क्या झुका दिया, अमरीकी आगबबूला हो उठे हैं।

अमेरिकी टीवी चैनलों पर अनेक प्रमुख विपक्षी नेताओं ने ओबामा के सर झुकाने की घटना को समूचे राष्ट्र के लिए शर्मनाक करार दिया। रूढ़िवादी नेता विलियम क्रिस्टोल ने तो यहां तक कह दिया कि ओबामा अमेरिका के इतिहास में रीढ़हीन नेता के रूप में याद किए जाएंगे।

एक अन्य नेता बिल बेनेट ने कहा-छी: ये तो भद्दी हरकत है ओबामा की। मैं इस दृश्य को दुबारा देखना पसंद नहींकरूंगा।

चैनल तो चैनल, इंटरनेट पर तमाम ब्लागर्स और वेबसाइटों पर ओबामा के अभिवादन के तरीके ने अमरीकियों की नींद उड़ा दी है।

नींद उड़े भी क्यों ना। पचासों साल पहले जिस देश को परमाणु बम के प्रहार से धूल धूसरित कर दिखाने का जो चमत्कार अमेरिका ने कर दिखाया था, वह जापान आज अमेरिका के सर चढ़ कर बोल रहा है।

पचास साल के बाद जापान में उस डीपीजे का शासन आया है जिसकी नींव में अमेरिका विरोध समाया हुआ है।
याद करिए सन् 2007 जब अमेरिका के अफगानिस्तान जाने वाले जहाजी बेड़े ईंधन, पानी और भोजन लेने के लिए जापान का इस्तेमाल कर रहे थे, उस समय जापान की डायट अर्थात संसद में अमेरिका विरोधी आवाज बुलंद करने वाला नेता कौन था?

जापान के आज के प्रधानमंत्री युकियो हातोयामा और उनकी सत्तारूढ़ पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष, जापान के नेता प्रतिपक्ष इचिरो ओजावा ने तब कहा था-हमें अमेरिका की गुलामी नहीं करनी है। हम अमेरिकी जहाजों को ईंधन देने , पानी देने, भोजन देने के लिए जापान को बाध्य करने वाले कानून को बदल देंगे। हम उस संविधान को बदला देंगे जिसके कारण आज भी हमें अपनी सुरक्षा के लिए, सैन्य जरूरतों के लिए अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता है।

जापान की डायट में अमेरिका विरोधी आवाज बुलंद करने वाले आज जापान की सरकार चला रहे हैं। करीब-करीब पचास सालों के बाद जापान में सत्ता परिवर्तन हुआ है। लिबरल पार्टी की जगह डेमोक्रेटिक पार्टी को जापान की जनता ने कुछ ही महीने पहले अगस्त में सत्ता सौंप दी।

आखिर क्या बात है कि ओबामा जापान के सम्राट के सामने झुक गए? क्या यह जापान में हुए सत्ता परिवर्तन का असर है? क्या ये बदलते जापान के रूख की हनक है? क्या ये जापान को पटाने का ओबामा का पैंतरा है? कितने ही सवाल है जो फिजाँ में तैर रहे हैं?

और अभी जापान में ओबामा के अभिवादन के तरीके की आग ठंडी भी नहीं पड़ी कि बीजिंग में कद्दावर अमेरिकाके राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा-हां, तिब्बत तो आप का ही है। तिब्बत पर आपके अधिकार को हम अमेरिकी सलाम करते हैं।

धन्य, धन्य, धन्य हुआ अमेरिका! शान्ति का नोबेल पुरस्कार क्या-क्या करवा और कहलवा सकता है कोई ओबामा से पूछे।

और पूछे परम पावन दलाई लामा से। वही लामा जिनके अरूणाचल प्रदेश जाने पर चीन ने अभी हाल में ही आपत्ति जताई थी। पर ये कमाल है हमारी परंपरा का, हमारे देश की सरकार ने कहा-चीन, होश में रहो। बधाई हो हमारे विदेश मंत्री को, वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी को, बंगाल के शेर को। चीन को उसी की भाषा में उत्तर भेज दिया ki arunachal हमारा है और दलाई लामा हमारे अतिथि हैं, जहां जाना चाहें वहां जाएं।

लेकिन दुनिया के दादा देश का खैरकदम देख लीजिए जरा। कुछ ही माह पूर्व परम पावन दलाई लामा अमेरिका गए थे राष्ट्रपति ओबामा से मिलने का समय मांगा था। उस समय भी ड्रेगन ने अमेरिका को आंख दिखाई थी। ओबामा सहम गए। परम पावन से मिलने का समय अंतत: ओबामा को नहीं ही मिला। वाह रे अमेरिकी शिष्टाचार! जापानके सम्राट अकिहितो और उनकी धर्मपत्नी साम्राज्ञी के सामने कमर के बल झुकने वाले ओबामा के इस करतब को व्हाईट हाउस शिष्टाचार बता रहा है। लेकिन ये शिष्टाचार उस समय कहां गया था जब दलाई लामा अमेरिकी राष्ट्रपति के दरवाजे पर खड़े होकर मिलने का समय मांग रहे थे।

नहीं मिलता है समय। ऐसा ही होता है दुनियां में उनके साथ जो इतिहास के किसी मोड़ पर कमजोर हो जाते हैं।कोई समय नहीं देता। अपने भी मुंह मोड़ लेते हैं। लेकिन इस विपरीत समय में भारत सरकार की भूमिका सचमुच हमारा सीना गर्व से चौड़ा करती है। हमारा सौभाग्य है कि हमारी सरकार ने परम पावन दलाई लामा के सन्दर्भ में अपनी परंपराओं का ध्यान रखा।

लेकिन। लेकिन हमें हकीकत को ध्यान में रखना होगा। ताकत की भाषा ही दुनिया जानती है। हमारी साख दुनियामें है लेकिन हमें अब धाक भी जमानी है।



1 comment:

  1. राजनीति के कुछ अलग वसूल तो होते ही हैं....

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