Friday, November 13, 2009
तुम सुन्दर, सुंदरतम हो
तुम सुन्दर, सुंदरतम हो
हाँ सुन्दर हो, तुम सुन्दर
सुन्दरतम रूप तुम्हारा
पर प्यार बिना सुन्दरता क्या
प्यार से निखरे जग सारा...
देखो सुन्दर धरती को
पहन हरीतिमा इठलाती
जीवन में सुन्दरता भरती
हर ऋतु में खूब सुहाती...
लेकिन कुछ मौसम ऐसे आते
लगता है ये कब जल्दी जाएँ
ठंडी, गर्मी घोर पड़े जब
धरती की जब दशा लजाती ....
धरती को भी को पावन करने
प्यार मलय-घन बन आता है
बसंत, शरद औ वर्षा ऋतु सा
वसुधा पर जीवन सरसाता है....
और प्यार की बातें करना
किसको बोलो नहीं है भाता
जीवन की सबकी डोर एक है
प्यार बनाता सबमें नाता...
उस नाते की खातिर सोचो
क्या लेकर यहाँ से जाओगे
यदि जीवन में बांटा प्यार सदा
तो यह प्यार सभी से पाओगे....
प्यार को जानो प्यार को समझो
यह रूप कहीं पर तो रुक जायेगा
ढलने की इसकी रीति पुरानी
ढलते ढलते निश्चित ढल जायेगा....
सुन्दरता यदि दिल में है
तो तुम सुन्दर, सुंदरतम हो
और कहूँ अब क्या मैं तुमसे
तुम धरती हो, तुम अम्बर हो ...
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