Wednesday, November 4, 2009

यही है विचारधारा

विचार ही जीवन है, जीवन का मर्म है। विचार ही है जो कृति को प्रेरणा देता है। कृति है तो निश्चित ही कुछ विचार भी होगा। विचार न आया होता तो तो संभवतः विधाता सृष्टि रचना के अतुलनीय महान कर्म में प्रवृत्त नहीं हुए होते। जब जीवन में गहन अँधेरा और तमस छाने लगे, अपने अभिन्न भी साथ छोड़ कर किनारे खड़े हो जायें तो एकमात्र विश्वसनीय साथी है विचार। विचार मुक्ति देता है। भव बन्धनों के कष्टों से विमुक्ति देने की सामर्थ्य अर्थात विचार। इहलौकिक, सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिए एकमेव शरण अर्थात विचार।

विचरो और विचारो। अंतरात्मा से विचारो। बुद्धि से, मन से विचार निकले तो आत्मा के दर्पण में उसे देख सुन लो। सही लगे तो आगे बढ़ जाओ, झिझक हो तो फिर विचारो, देखो कि श्रेष्ठ जन क्या कहते हैं।

महाजनों एन गतः स पन्थाः ।

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