जलवायु परिवर्तन पर सीआईआई एवं वर्ल्ड इकांनामिक फोरम द्वारा
आयोजित संगोष्ठी में पूर्व विदेश सचिव 'श्याम शरण' ने कहा
जलवायु परिवर्तन वैश्विक समस्या , अंतर्राष्ट्रीय समन्यव जरूरी
''बार्सिलोना में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में आयोजित चर्चा के परिणाम उत्साहवर्धक नहीं रहे। भारत का स्पष्ट मानना है कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है और इसका समाधान विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच परस्पर सहयोग एवं समन्वय से ही निकल सकता है। ''
ये कहना है भारत के पूर्व विदेश सचिव श्री श्याम शरण का। श्री शरण विगत् 10 नवंबर को नई दिल्ली में सुप्रसिद्ध औद्योगिक संगठन सीआईआई एवं वर्ल्ड इकांनामिक फोरम के तत्वावधान में आयोजित 25वें `इंडिया इकंनामिक समिट ´ को संबोधित कर रहे थे।
उल्लेखनीय है कि श्री श्याम शरण कोपेनहेगन सम्मेलन में प्रधानमंत्री के विशेष दूत के रूप में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल में शामिल रहेंगे।
उन्होंने कहा कि आज दुनिया को एक ऐसे साझे मंच की जरूरत है जिसके द्वारा `क्लीन एवं ग्रीन टेक्नोलॉजी ´ को विकसित देश और विकासशील देशों के मध्य परस्पर बांटा जा सके। इस मार्ग से समस्या का समाधान निकल सकता है।
उन्होंने `ग्रीन टेक्नोलॉजी ´ के प्रयोग पर जोर देते हुए कहा कि विकसित देशों को इस संदर्भ में विकासशील देशों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारत किसी भी समझौते की दशा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा।
उन्होंने कहा कि भारत एक जिम्मेदार देश है और इसीलिए हमने कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए अपनी ओर से नीति का निर्धारण कर लिया है। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में राष्ट्रीय कार्रवाई योजना एवं राष्ट्रीय सौर उर्जा मिशन का हमारा कार्यक्रम इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि विकसित देशों को भारत की कठिनाई को भी समझना होगा। हम अभी भी विकासशील हैं और हमारे विकास की राह में आज भी बहुत से अवरोध हैं।
भारत पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के संदर्भ में श्री शरण ने कहा कि हिमालय पर स्थित हिमनदों के पिघलने के बारे में अनेक विवरण प्रकाश में आए हैं लेकिन भारत पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को स्पष्टत : जानने के लिए हमें कुछ और अध्ययन करने होंगे।
इस अवसर पर आयोजित `व्यापार एवं जलवायु परिवर्तन : आर्थिक जरूरत या हरित् साम्राज्यवाद ´ विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए नेशनल फॉरिन ट्रेड काउंसिल , अमेरिका के अध्यक्ष विलियम ए रिनिश्च ने कहा कि संसार संक्रमण की बेला से गुजर रहा है और इस परिस्थिति में भारत और चीन जैसे प्रमुखतम विकासशील राष्ट्र ही भविष्य में `हरित तकनीकी ´ के संदर्भ में नवोन्मुखी पथ प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा जलवायु परिवर्तन के बारे में किसी भी समझौते में बौद्धिक संपदा अधिकार एवं कार्बन उत्सर्जन में कटौती से जुड़े मुद्दे का समावेश जरूरी है।
लंदन स्कूल ऑफ इकंनामिक्स के प्रोफेसर लार्ड स्टर्न ने अपने उद्बोधन में कहा कि कोपेनहेगेन में जलवायु परिवर्तन के प्रश्न पर कोई भी समझौता मौलिक एवं नैसर्गिक होना चाहिए। उन्होंने इस अवधारणा का पुरजोर खण्डन किया कि विकास और कार्बन उत्सर्जन में कटौती एक दूसरे के विरोधी हैं। उन्होंने कहा कि हरित तकनीक प्रचलित तकनीकी के मुकाबले बेहतरीन है और इसके प्रयोग पर आने वाला खर्च गैर हरित तकनीकी के मुकाबले मात्र एक से दो प्रतिशत तक अधिक है।
फ्रांस से पधारे बेन जे वरवायेन ने कहा कि विश्व समुदाय को एक मूलगामी समझौते के लिए मन बनाना होगा और इसमें शीघ्रता भी बरतनी होगी। उन्होंने कहा कि वार्ता प्रक्रिया को हर हालत में गतिशील बनाए रखना होगा।
सुप्रसिद्ध आईटी कंपनी विप्रो के बोर्ड के सदस्य एवं संयुक्त अधिशाषी श्री सुरेश वासवानी ने कहा कि निजी क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के प्रश्न पर अपनी जिम्मेदारी तय करनी चाहिए एवं हरित तकनीकी के प्रयोग पर अधिक से अधिक बल देना चाहिए।
मोजर बेयर कंपनी के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक श्री दीपक पुरी ने इस अवसर पर कहा कि निजी उद्यमों के सामने `ग्रीन तकनीकी ´ में निवेश का सुनहरा अवसर है। हरित तकनीकी का व्यापार सन् 2020 तक 250 बिलियन अमरीकी डालर तथा सन् 2050 तक एक टि्रलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच जाएगा।
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