
हमारे अभियंताओं और सरकारी मशीनरी को नदियों को बांधने से फुरसत नहीं है और उधर इस्रायल के वैज्ञानिकों ने सड़क यातायात के द्वारा विद्युत निर्माण का सफल एवं क्रांतिकारी प्रयोग संभव कर दिखाया है।
बीते अक्तूबर महीने में इस्रायल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सहयोग से इस्रायल की कंपनी इनोवाटेक ने एक सड़क पर यातायात की गति और दबाव का उपयोग कर बिजली पैदा करने का अद्भुत प्रयोग किया।
जलवायु संकट के दौर में वैकल्पिक उर्जा स्रोत विकसित करने के लिहाज से दुनिया में अनेक प्रयोग हो रहे हैं। इस्रायल के वैज्ञानिकों का यह प्रयोग इन सबमें अनूठा और अतुलनीय है। इस्रायल ने बिल्कुल एक नये ढंग से उर्जा के वैकल्पिक स्रोत की खोज कर ली है।
थोड़ी कल्पना करें कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर सांय सांय आवाज करती हुई हजारों छोटी-बड़ी गाड़ियां तेजी से निकल रही हैं। उनकी गति, दबाव और उससे उत्पन्न कम्पन्नों से क्या सड़क की ऊपरी परत के नीचे बिजली बन सकती है?
इनोवाटेक के वैज्ञानिकों ने इसी सवाल पर आधारित प्रयोग किया। उन्होंने प्रयोग के लिए इस्रायल के हेफर नगर की एक सड़क के नीचे एक विद्युत उत्पादक यंत्र जिसे पीजो-इलेक्टि्रक जेनरेटर नाम से जाना जाता है, के संजाल को कई सौ मीटर दूरी तक लगा दिया।
बस फिर क्या था? विगत 7 अक्तूबर को जब प्रयोग वाली सड़क पर गाड़ियां सरपट दौड़ीं तो सड़क के नीचे लगे यंत्र ने अपना काम शुरू कर दिया। दबाव, झटके, गति और कम्पन्न के आधार पर यंत्र से बिजली उत्पादन प्रारंभ हो गया । सड़क पर वाहनों की गतिज उर्जा को इनोवाटेक के पीजो-इलेक्टि्रक यंत्र ने तेजी से विद्युत उर्जा में तब्दील करना शुरू कर दिया।
इस प्रयोग की निदेशक डॉ. लूसी एडेरी आजुले ने प्रयोग की सफलता के बाद प्रेस प्रतिनिधियों को बताया कि यंत्र सड़क की ऊपरी परत से 5 सेंटीमीटर नीचे बिछाया गया था।
उन्होंने कहा कि हमारे प्रयोग से जो परिणाम आए हैं उसके आधार पर सड़क की एक पटरी पर यदि एक कि.मी. तक हम अपने यंत्र को लगा दें तो हमें 200 किलोवाट प्रति घंटे तक विद्युत उत्पादन मिल सकता है बशर्ते सड़क पर यातायात और आवागमन पर्याप्त हो। खासतौर पर यदि घंटे भर में 600 तक छोटी-बड़ी चार पहिया गाड़ियां इसके ऊपर से गुजरती हैं तो हमें अच्छे परिणाम मिलते हैं।
उन्होंने कहा कि एक बार सड़क के भीतर यंत्र को लगा देने पर उसकी मरम्मत आदि की जरूरत 30 वर्ष तक नहीं पड़ेगी। हां, उत्पादन के आधार पर उसकी कार्यक्षमता के संदर्भ में हमें प्रतिवर्ष विश्लेषण करते रहना होगा।
डॉ. लूसी के अनुसार, फिलहाल तो हम इस बिजली को बैटरियों में सुरक्षित कर रहे हैं लेकिन शीघ्र ही हम इस यातायात आधारित उत्पादन को ग्रिड से जोड़ कर विद्युत आपूर्ति को सीधे पावर हाउसों में भेजना प्रारंभ कर देंगे।
उन्होंने बताया कि प्रति किमी. तीन हजार विद्युत उत्पादक यंत्रों की जरूरत पड़ेगी। कंपनी फिलहाल जिस यंत्र का सफल परीक्षण कर चुकी है उसका मूल्य 30 डॉलर प्रति यंत्र पड़ता है। मतलब प्रति किमी. यंत्र लगाने पर 90,000 डॉलर का खर्च आएगा।
भारत के हिसाब से खर्च का आकलन करें तो करीब पचास लाख रूपये प्रति किमी ( ईमानदार डील होने पर, जिसकी सम्भावना अपने अफसरों के साथ कम ही रहती है) विद्युत उत्पादक यंत्र की खरीद पर खर्च होंगे। इसे सड़क के नीचे लगाने का खर्च अवश्य अतिरिक्त आएगा।
इनोवाटेक कंपनी अगले चरण में रेल की पटरियों और विमान के रनवे के नीचे यंत्र लगाकर विद्युत उत्पादन करने के उपक्रम में जुट गई है। इसी के साथ-साथ पैदल यात्रियों के चलने के लिए बने फुटपाथों के नीचे भी यंत्र फिट करने की उसकी मंशा है।
यहां उल्लेखनीय बात यह है कि दुनिया में विद्युत निर्माण के जो नायाब तरीके निकले हैं उनमें पैरों के जूतों में यंत्र फिटकर चहलकदमी और जोगिंग के द्वारा उत्पन्न होने वाले दबाव और कम्पन्नों से भी विद्युत उत्पादन करने के सफल प्रयोग शामिल हैं।गैर परंपरागत व अन्य देशज तरीके तो इनमें शामिल हैं ही।
लेकिन क्या इन प्रयोगों से हमारी नौकरशाही और हमारे नेताजी लोग कुछ सबक सीखेंगे?