Wednesday, September 2, 2009

इक आग जल रही है

इक आग जल रही है
ह्रदय में, ह्रदय मैं
निगलने को आतुर
मिलने को आतुर
उससे जो आग जल
रही है सबमें, रब में
इक आग जल रही है।

मुझको मालूम है
क्या तुमको मालूम है
कण कण में जो छिपी है
पैदायशी जो सबको मिली है
वो तुममे भी है
वो मुझमे भी है ,
वो आग तुममें भी
जल रही है ।
आओ जाने थोड़ा विचारें
अन्याय के सारे ठिकाने
इस आग में जला दें
मिला दें राख में
जो बन गए हैं शोषण के पुतले ॥

इक आग जल रही है।

1 comment:

  1. बहुत खुब , लाजवाब रचना......

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