अमराइयां अब नहीं हैं, कोयल की कूक भी नहीं है
तालों में देखो पानी नहीं है, पपीहे की पीकहां नहीं है
गीधों की टोली दिखती नहीं है, कउवा बैठा उदास है
मनों में हमारे जहर भर रहा, जहरीली होती सांस है
कैसी अजब छाई है जड़ता उठती नहीं अब आवाज है
हाले-चमन बुरा है बहुत, सोचो कैसे जीएंगे
कैसे तुम जीओगे सोचो तो कैसे हम जीएंगे.......
तपती धरती चढा बुखार
मानो न मानो मेरे यार
हमारे तुम्हारे दिन हैं चार
मगर पीढियाँ आगे भी हैं
बच्चों की खुशियाँ आगे ही हैं
सोचो उनको क्या दोगे
न बरसेगा पानी न होगी फुहार....
वक्त रहते अब जागना है
हक़ जिंदगी का अब माँगना है
हर सितम बाधा को तोड़ो
जुड़ती है दुनिया सबको जोडो
धरती हमारी ये घर है हमारा
चेहरा इसका किसने बिगाडा
जहाँ को बदलने हम चलेंगे
दिए ज़िन्दगी के रोशन करेंगे....
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Sundar likha hai........josh ho man mein to sab ho sakta hai...swagat hai aapka
ReplyDeletekhoobsoorat kavita hai.blog ki duniya me swagat hai,isi tarah niranter likhate rahe.
ReplyDeleteसराहनीय।
ReplyDeleteबढिया तेवर हैं बंधु...
ReplyDeleteशुभकामनाएं....
very nice. narayan narayan
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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