Monday, July 20, 2009

हाँ, यही ज़िन्दगी...

रात स्याह होती गई रास्ते हम भटकने लगे
उम्र ज्यों बढ़ती गई हम भी छोटे होने लगे
स्वप्न देखे-दिखाए, जाने क्यों बिखरने लगे
हंसते हंसते अरे क्या हुआ, फूट फूट हम रोने लगे १


हंसाती रुलाती यही जिंदगी
रूठती मनाती यही जिंदगी
जीतती हारती यही जिंदगी
मेरी ज़िन्दगी हाँ तेरी जिन्दगी २

मन में था एक सपना, बदलता गया....
चोट मिलती गयी, स्वप्न ढहता गया...
बदलने की सोची थी हमने फिजाएं
वक्त ऐसा चला सब बदलता गया
हमको लगा कि कुछ मैंने है किया
वक्त आया तो पाया मैं ही बदलता गया

बदलता है क्या सिर्फ आदमी
बदलती नहीं क्या तक़दीर है
झाडे पोंछे नहीं अगर रोज तो क्या
धुंधलाती नहीं तस्वीर है
जलती धधकती अगर आग है
उठाती धुआं भी वही आग है
यही है बदलना हम भी हैं बदले
मगर आग है ये छुपी आग है।

अँधेरा घना है कुहासा है छाया
पथ पर रुके क्यों, ये जवानी नही है
भटके हो थोडा पर चलो तो sahi
रुकना कहीं से बुद्धिमानी नहीं है।
पग है तुम्हारा तो राहें तुम्हारी
छोटी सी सबकी कहानी यही है
बड़प्पन ना खोना छोटे न होना
हराती जिताती यही जिन्दगी है यही जिंदगी है....

1 comment:

  1. woh what a nice poem .it seems that it is highly inspire by your own life.But dont worry it is also valuable for other person also.carry on such type of creation.a perfect man is that who doesnot change according circumstances,a ideal man is that who make circumstances according its own favour.dont worry that time will come soon when your dreams become true.trust me i believe it.you must believe on my believe.

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