Tuesday, July 28, 2009

‘सच का सामना’ या ‘भटकाव’ का


क्या ये सचमुच ‘सच का सामना’ है? सच मानें तो ये तो उस भटकाव का सामना है जिसके कारण कितने ही लोग अपनी खूबसूरत पारिवारिक जिंदगी तबाह कर लेते हैं, ये भटकाव भारतीय परिवार संस्था के लिए बहुत ही त्रासदायक है। हमारा दुर्भाग्य है कि महज चंद रूपयों की खातिर हम इस भटकाव को सहज ही अगली पीढ़ी को भेंट कर रहे हैं। ये टिप्पणी स्टार मनोरंजन चैनल द्वारा प्रसारित कार्यक्रम सच का सामना के संदर्भ में उपजे हालिया विवाद को उम्दा तरीके से परिभाषित करती है। हमने वाराणसी के एक विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. रामप्रकाश से पूछा था कि यदि मौका मिला तो इस सच का सामना वे कैसे करेंगे। इसके जवाब में उन्होंने अपने उत्तर को और धारदार करते हुए हम से ही पूछ लिया कि ‘ये सच अमेरिका का है, यूरोपीय संस्कृति का है, कुछ उंचे अय्याश किस्म के अमीरजादों का है, या इसका बाकी हिंदुस्तान से कुछ वास्ता है?’ बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा – ‘लेकिन बुद्धू बक्से की चली तो वो इसे हिंदुस्तान के शहर-शहर गांव-गांव की रगों में यूं दौड़ा देगा कि अपनी देसी पहचान और परिवार की खुशियां ही बेमानी हो जाएंगी। इस बुद्धू बक्से ने और इस पर प्रसारित हो रहे चैनलों ने पिछले दो दशकों में सिवाय पश्चिमीकरण और अपसंस्कृति के प्रसारण के देश को और दिया क्या है।’
जो भी हो सच का सामना की अनुगूंज गत बुधवार को जहां संसद में सुनाई दी वहीं गुरूवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इस ‘रिएलिटी शो’ के खिलाफ सुनवाई के लिए याचिका स्वीकार कर ली। राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद कमाल अख्तर ने इस टी.वी. शो के प्रसारण पर सवाल उठाते हुए कहा कि अश्‍लील और अमर्यादित सवाल पूछने में इस कार्यक्रम ने सारी हदें तोड़ दी हैं। शून्यकाल में उन्होंने राज्यसभा के सभापति के माध्यम से केंद्र सरकार से जानना चाहा कि क्या इस कार्यक्रम का प्रसारण संविधान और समाज विरोधी नहीं है। उन्होंने पूछा कि कार्यक्रम का एंकर खुलेआम पारिवारिक शालीनता की धज्जियां उड़ा रहा है। उन्होंने एक उदाहरण का जिक्र करते हुए कहा कि एक कार्यक्रम के दौरान महिला से उसके पति के सामने ही पूछा गया कि क्या उसका कोई अवैध संबंध रहा है अथवा नहीं? महिला के द्वारा उत्तर नकारात्मक दिए जाने पर उसके पति के सामने ही एंकर कहता है कि आप झूठ बोल रही हैं, आपके पॉलीग्राफी टेस्ट के मुताबिक आपका कहना गलत है। कमाल अख्तर ने पूछा कि इस प्रकार की प्रस्तुति से उस महिला और उसके पति पर क्या गुजरी होगी, इसे समझने की जरूरत है। उन्होंने टी.वी. कलाकार युसुफ हुसैन से उनके पत्नी और बेटी के सामने पूछे गए सवाल का भी जिक्र किया। इस सवाल में पूछा गया था कि क्या उन्होंने कभी अपनी बेटी की उम्र की लड़की से शारीरिक संबंध बनाए हैं? ऐसे सवालों की बुनावट पर गंभीर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा कि ये कार्यक्रम भारत की संस्कृति के विरूद्ध है, व्यक्ति की निजी गरिमा और उसकी मर्यादा के खिलाफ है, और इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।
राज्यसभा में इस मुद्दे पर मचे भारी हंगामे का असर बुधवार की रात ही दिखाई पड़ गया। सूचना और प्रसारण मंत्रालय कार्यक्रम के प्रसारण के खिलाफ स्टार न्यूज को नोटिस जारी कर दी। मंत्रालय ने चैनल को 27 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करने का समय देते हुए पूछा कि ये कार्यक्रम क्या स्वस्थ एवं शालीन मनोरंजन के प्रसारण संबंधी अनुच्छेद 6/1 का उल्लंघन नहीं है? क्यों न इस कार्यक्रम का प्रसारण रोक दिया जाए?
दूसरी ओर गुरूवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली के एक जागरूक नागरिक दीपक मैनी की ओर से कार्यक्रम के प्रसारण के विरूद्ध याचिका दाखिल की गई। न्यायालय ने इस विचारार्थ स्वीकार कर स्टार न्यूज चैनल और कार्यक्रम के निर्माता सिध्दार्थ बसु को तलब कर लिया है। मैनी ने न्यायालय के सम्मुख याचिका में कार्यक्रम के प्रसारण को भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करार देने के साथ ही इसे संस्कृति और संविधान विरोधी भी ठहराया। उन्होंने आरोप लगाया कि ये कार्यक्रम भारतीय संविधान के विरूद्ध तो है ही, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 294 के अन्तर्गत ये एक दण्डनीय अपराध भी है। इसे तत्काल रोके जाने के साथ ही सरकार को ये निर्देश भी दिए जाने चाहिए कि वह एक उचित समीक्षा मंच का गठन करे ताकि ऐसे कार्यक्रमों की प्रसारण पूर्व समीक्षा सुनिश्चित हो सके।
वस्तुत: सच का सामना अमेरिकी और यूरोपीय टी.वी कार्यक्रम की नकल पर आधारित प्रस्तुति है। अमेरिका में प्रसारित होने वाले एक टी.वी. कार्यक्रम मोमेंट ऑफ ट्रूथ का ही ये भारतीय संस्करण है। मोमेंट ऑफ ट्रूथ कार्यक्रम का निर्माण मीडिया किंग रूपर्ट मर्डोक की बेटी एलिजाबेथ मर्डोक ने पहले पहल किया था। पश्चिम के अनेक देशों में इस कार्यक्रम का प्रसारण प्रतिबंधित किया गया। खुद अमेरिका में भी इस कार्यक्रम की जबर्दस्त आलोचना हुई क्योंकि कार्यक्रम में शामिल अनेक प्रतिभागियों के घर इस कार्यक्रम के कारण बिखर गए। कई का तो परस्पर तलाक हो गया। इस कार्यक्रम में भी उपस्थित प्रतिभागी से उसके पारिवारिक सदस्यों और मित्रों की उपस्थिति में 21 सवाल पूछे जाते हैं और इस सच का सामना में भी इसी भांति 21 सवाल पूछे जाते हैं। इन सवालों के उत्तर को पॉलीग्राफी परीक्षण की कसौटी पर कसा जाता है। उत्तर झूठा पाए जाने पर प्रतिभागी आगे खेलने का अवसर खो देता है। इसके पूर्व स्टार प्लस चैनल पश्चिमी मीडिया की कल्पना से उपजे और वहां प्रसारित हो चुके कार्यक्रम की नकल कर कौन बनेगा करोड़पति नामक कार्यक्रम का भी प्रसारण कर चुका है।
हालिया दिनों में प्रसारित टी.वी. कार्यक्रमों पर टिप्पणी देते हुए फिल्म और टी.वी प्रॉडक्शन से जुड़े उदीयमान निर्देशक अंकित भटनागर कहते हैं- हमारे यहां टी.वी. इंडस्ट्री में कुछ मौलिक सोचने और उसे कर दिखाने वालों का अकाल पड़ता जा रहा है। सारे प्रॉडक्शन हाउस सिर्फ और सिर्फ ऐसे धारावाहिकों और कार्यक्रमों के निर्माण में लगे हैं जो जल्द से जल्द सनसनी बटोर कर भारी संख्या में दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सफल हो सकें। इस स्थिति को बदल पाना असंभव सा लग रहा है। वे महाभारत, रामायण और चाणक्य आदि धारावाहिकों के प्रसारणों की बाबत कहते हैं- एक तो पीढ़ी बदली है, दूसरे उनकी अभिरूचियां बदल गई हैं। दुनिया सूचना के लिहाज से सिकुड़ कर गांव में बदल गई है। माइकल जैक्सन के लिए रोने वाले भारत में भी पैदा हो गए हैं। जाहिर सी बात है कि शहरी मध्यम वर्ग रईस अमीरी शानो-शौकत वाली जीवनशैली पाने के लिए मचल रहा है। फिल्मों ने इसमें तड़का लगाया है बाकी कमी ये धारावाहिक पूरी कर रहे हैं। हम लोग नकलची बन गए हैं। सस्ते में करोड़ों कमाने की थीम देने वाले भी मीडिया इंडस्ट्री में पैदा हो गए हैं। ऐसे में कोई निर्माता महंगे धार्मिक या संस्कारप्रद कार्यक्रमों के निर्माण और प्रसारण को ज्यादा तरजीह देता नहीं दिखता।
अकादमिक जगत से जुड़े और प्रबंध शास्त्र के व्याख्याता डॉ. अमित सिंह का मानना है कि इसके लिए हमारी शिक्षा प्रणाली कम दोषी नहीं है। उनके अनुसार जिस मानसिकता को हमने पिछले तीस सालों में पनपाया और पाला-पोषा है वह मानसिकता जीवन के हर क्षेत्र में पश्चिमीकरण पर चलने की आदी हो चुकी है, भारत का मीडिया अब कोई अपवाद नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय में हाल ही में एक वरिष्‍ठ अधिवक्ता के मार्गदर्शन में प्रैक्टिस शुरू करने वाले पीयूष जैन कहते हैं- टी.वी कार्यक्रम निर्माताओं को हमारे मूल्यों से कुछ लेना देना नहीं है। पहले भी हम कहानी कहानी घर-घर की में इसी प्रकार का अश्‍लील और अमर्यादित प्रसारण देख चुके हैं। उस समय ही आवाज उठानी चाहिए थी, कुछ लोगों ने ध्यान आकृष्‍ट करने की कोशिश की लेकिन वो तो नक्कारखाने में बस तूती बन कर रह गए। खैर, इस बार मामला न्यायालय के सामने आया है, हमें विश्‍वास है कि न्यायालय इस पर सख्त रूख अपनाएगा।
लेकिन सवाल समाज का है। ‘समाज का बिगाड़ तो हो गया ना, इस टी.वी. ने कर ली ना पूरी अपने मन की।’ दिल्ली के प्रीत विहार इलाके की रहने वाली अध्यापिका सुश्री प्रतिमा का यही कहना है। प्रतिमा के अनुसार, स्कूलों में बच्चों के व्यवहार में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहे हैं। ऐसे में टी.वी. पर इस प्रकार के कार्यक्रम और उसी भांति समलैंगिक संबंधों को लेकर हो रही खुली चर्चा ने बच्चों का खेलता-खाता माहौल जुगुप्साजनक बना दिया है। आखिर इस पर कहीं तो रोक लगानी होगी। क्या है इलाज तो उत्तर देते हैं प्रोफेसर राम प्रकाश। कहते हैं जिसने दर्द दी दवा भी वही देगा। ये टी.वी. का रिमोट अपने हाथ में लेना पड़ेगा समझदार भारतीयों को। सरकार चेते और इस पर नियंत्रण लगाए। ये हिंदुस्तान है कोई यूरोप या अमेरिका नहीं। हमें तो चाहिए था कि हम अमेरिका और यूरोप को अपने मूल्यों और सदाचार पूर्ण जीवन से प्रभावित कर वहां का उन्मुक्त माहौल बदल देते लेकिन हो गया उल्टा, हम ही उनके चपेटे में आ गए हैं। और इस कार्य में इस टी.वी., वीडियो और इंटरनेट ने बेड़ा गर्क ही किया है। इस पर नियंत्रण औ इसके माध्यम से स्वस्थ मनोरंजन को प्रसारित करने की दिषा में हमें प्रयास तेज करने होंगे।
सवालों के घेरे में सवाल
• स्मिता मथाई नामक महिला से उसके पति और अन्य पारिवारिक सदस्यों के सामने कार्यक्रम के एंकर राजीव खण्डेलवाल ने सवाल पूछा-क्या आप किसी और मर्द के साथ सोना पसंद करेंगी यदि आपके पति को पता न चले तो। उत्तर में स्मिता ने नहीं जवाब दिया तो एंकर ने पॉलीग्राफिक टेस्ट के हवाले से कहा कि नहीं, आप झूठ बोल रही हैं।
• एक अन्य सवाल जिसमें महिला से पूछा गया कि क्या आपने कभी अपने पति को जान से मारने की सोची थी?
• युसुफ हुसैन से पूछा गया कि उन्होंने अपनी बेटी की उम्र की लड़की से शारीरिक संबंध बनाए हैं या नहीं?
• टी.वी.कलाकार उर्वशी ढोलकिया से उनके दो किशोरवय बच्चों के सामने पूछा गया कि क्या नाबालिग उम्र में गर्भवती होने के कारण आपको स्कूल से निकाला गया था?
• प्रख्यात क्रिकेटर विनोद कांबली से पूछे गए एक सवाल ने तेंदुलकर और कांबली को बचपन की दोस्ती को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। हालांकि कांबली सवाल के बाबत उत्तर हमेशा नकारात्मक ही रहा लेकिन एंकर ने पॉलीग्राफिक टेस्ट के बहाने उन्हें ही झूठा साबित कर दिया।
• निर्माता-एंकर और स्टार प्लस चैनल से जुड़े सेलिब्रिटिज क्यों नहीं करते सच का सामना?
• सवाल ये भी है कि जिन सवालों को उछाल कर प्रतिभागियों की पारिवारिक मर्यादाएं तार तार की जा रही हैं उन्हीं सवालों का सामना पहले इस कार्यक्रम के एंकर, पोडयूसर और कार्यक्रम से जुड़े अन्य प्रमुख लोग क्यों नहीं करते?
• क्या महज चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिए ऐसे बेहूदे, अश्‍लील और अशालीन सवाल किसी से सार्वजनिक तौर पर पूछे जा सकते हैं। क्या भारतीय संविधान इसकी अनुमति देता है?
• क्या यह सही नहीं है कि मोमेंट ऑफ ट्रूथ जिसकी नकल कर सच का सामना कार्यक्रम तैयार किया गया है के अनेक संस्करण दुनिया के अनेक देशों में प्रतिबंधित हुए। ग्रीस और कोलंबिया जैसे देशों ने इस कार्यक्रम की प्रतिकृतियों का प्रसारण प्रतिबंधित किया।
क्या कहता है संविधान और शासन
भारतीय संविधान की धारा 19 जहां अपने सभी नागरिकों को वाक-स्वातंत्र्य एवं अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का मौलिक अधिकार प्रदान करती है उसी के साथ वह भारत की संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्योंके साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्‍टाचार एवं सदाचार के हितों को संरक्षित करने के लिए इस स्वातंत्र्य का युक्तियुक्त निर्बंधन भी करती है। इस लिहाज से लोक व्यवस्था, शिष्‍ट आचरण एवं सदाचार को बिगाड़ने के लिए इस कार्यक्रम को दोषी ठहराया जा सकता है भले ही इसमें कितना ही सच या झूठ क्यों ना समाहित हो।
इसके अतिरिक्त भारतीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रसार व प्रचार अनुदेशों एवं उसकी शर्तों के अनुच्छेद 6-1 का भी इस कार्यक्रम के प्रसारण द्वारा स्वत: ही उल्लंघन हो जाता है। ये अनुच्छेद शालीन एवं स्वस्थ मनोरंजन को प्रोत्साहन देता है।

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