Sunday, October 18, 2009
लोहारीनाग पाला में गंगा-प्रवाह पर जारी है एनटीपीसी का विध्वंस
अजीब विडंबना है! एक ओर केंद्र सरकार ने विगत् 20 फरवरी, 2009 को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण गठित करने की राजाज्ञा जारी की, गंगा को राष्ट्रीय नदी होने का गौरव प्रदान किया, राजाज्ञा को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिए गत् 5 अक्तूबर, 2009 को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में प्राधिकरण की अति महत्वूपर्ण बैठक आयोजित की गई वहीं पर गंगोत्री और उत्तरकाशी के बीच निर्माणाधीन लोहारीनागपाला जल विद्युत परियोजना पर केंद्र सरकार और उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद निर्माणकार्य जारी रहने से सरकार की मूल मंशा पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है।
लोहारीनागपाला परियोजना उत्तराखण्ड में केंद्र सरकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय तापीय विद्युत निगम यानी एनटीपीसी द्वारा निर्मित की जा रही उन परियोजनाओं में से एक है जिसे रोकने के लिए पिछले कुछ सालों से देश में लगातार विभिन्न संगठन आंदोलनरत रहे हैं। इस संदर्भ में जून, 2008 में कानपुर आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर गरूदास अग्रवाल के उत्तरकाशी और दिल्ली में किए गए आमरण अनशन ने निर्णायक भूमिका निभाई।
सुप्रसिध्द योग गुरू स्वामी रामदेव के नेतृत्व में संतों द्वारा गठित गंगा रक्षा मंच, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के नेतृत्व में गठित धर्म रक्षा मंच, विश्व हिंदू परिषद आदि संगठनों ने भी गंगा की दुर्दशा पर आंदोलनात्मक रूख अपना लिया। संत-महात्मा और हिंदू नेताओं की सक्रियता के चलते तब जून, 2008 में उत्तराखण्ड सरकार ने मनेरी भाली द्वितीय चरण एवं पाला मनेरी परियोजना को निलंबित करने के आदेश जारी किए।
कालांतर में जनवरी, 2009 में प्रोफेसर अग्रवाल के दुबारा अनशन पर बैठने व हिंदू संतों व संगठनों के आंदोलित हो जाने के कारण केंद्र सरकार ने लोहारीनाग पाला परियोजना पर दिनांक 19 फरवरी, 2009 को काम रोकने का फैसला लिया। इसके विरूध्द कुछ लोगों ने उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की और काम जारी रखने के लिए उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की गुहार लगाई। उच्च न्यायालय ने तब केंद्र सरकार द्वारा लोहारीनाग पाला परियोजना पर काम रोकने के निर्देश के अनुपालन पर रोक लगा दी। परिणामत: रोका गया कार्य दुबारा प्रारंभ हो गया।
20फरवरी, 2009 को केंद्र सरकार ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण गठित करने की घोषणा भी कर दी। आगे चलकर उच्च न्यायालय ने दिनांक 18 मई, 2009 को पाला मनेरी और भैरों घाटी परियोजनाओं के संदर्भ में सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि नवगठित राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण सभी जल विद्युत परियोजनाओं की समीक्षा कर निर्णय करे कि इन पर काम आगे बढे अथवा नहीं।
न्यायालय ने अपने निर्णय में लोहारीनाग पाला परियोजना को भी शामिल कर लिया। निर्णय में उच्च न्यायालय ने सभी विवादों में निर्णायक कार्रवाई का अधिकार प्राधिकरण को देते हुए उसे निर्देशित किया वह शिघ्र विषेशज्ञ समिति का गठन कर इन परियोजनाओं के भविश्य के बारे में फैसला ले। न्यायालय ने इसी के साथ पूर्व में केंद्र सरकार द्वारा लोहारीनाग पाला परियोजना पर लगाई गई रोक के आदेश को भी बरकरार रखने का निर्णय सुना दिया। इस प्रकार लोहारीनाग पाला परियोजना पर निर्माण कार्य स्वत: ही रूक गया।
लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। एनटीपीसी के कुछ अधिकारियों और ठेकेदारों के मनमाने रवैये ने भारत सरकार को ही कटघरे में ला खड़ा किया है। केंद्र सरकार के आदेश और उच्च न्यायालय के निर्णय को धता बताते हुए गंगा के उद्गम स्थान गंगोत्री और उत्तरकाशी के बीच लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना पर सुरंग निर्माण एवं पहाड़ों के विध्वंस का कार्य जारी है।
विगत 10 अक्टूबर को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, शड्दर्शन साधु समाज तथा विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े वरिश्ठ संतों, महात्माओं एवं नेताओं ने जब राष्ट्रीय तापीय उर्जा निगम अर्थात एनटीपीसी द्वारा निर्मित की जा रही लोहारी नागपाला परियोजना स्थल का भौतिक निरीक्षण किया तो वे अवाक् रह गये। नेताओं के साथ उपस्थित पत्रकारों का दल भी भौंचक था।
हिमालय से उठ रही ठंडी हवा के झोकें समूचे वातावरण में रह-रह कर जहरीली, बारूदी गंध फैला रहे थे। उत्तरकाशी से आए संतों और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं समेत उपस्थित पत्रकारों ने इसे साफ महसूस किया। परियोजना स्थल पर खामोश खड़ी डम्पर गाड़ियां और जे.सी.वी. मशीनों की हालत भी सच्चाई बयां कर रही थी। गंगोत्री से आ रहे जलप्रवाह की दाहिनी ओर के पहाड़ के बीचों बीच बनाई गई सुरंग पर फाटक निर्मित कर उस पर बड़ा सा ताला जड़ दिया गया था। अंदर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं थी। इस संवाददाता ने अंदर घुसने की कोशिश की तो उसे जबरन रोक दिया गया। एक अन्य स्थान पर भी केन्द्रीय सुरक्षा बल के जवानों से फोटोग्राफी के सवाल को लेकर तीखी झड़प हो गई।
प्रथम दृष्टया स्पष्ट था कि उच्च न्यायालय के स्थगनादेश के बावजूद चुपचाप परियोजना का निर्माण कार्य आगे बढ़ाया जा रहा है। उपस्थित कर्मचारियों में से अनेक कर्मियों ने इस बात की पुश्टि की। पहचान उजागर न करने की शर्त पर एक कर्मचारी ने सब कुछ उगल दिया। उसने कहा – ‘यहां काम कभी रूका ही नहीं। हमेशा ऊपरी तौर पर ही काम रोकने का दिखावा किया गया। लेकिन सुरंग के भीतर तो काम दिन रात चलता रहा है और अभी भी चल रहा है। आप अगर सुरंग के भीतर जा सकते हैं तो जाकर देखिए अंदर किए गए ताजे निर्माण आपको दिख जाएंगे। विस्फाटकों से पहाड़ अभी भी तोड़े जा रहे हैं। ये जो गंध यहां फैली है, ये विस्फोटकों की ही गंध है।’ अपनी बात को और मजबूती देते हुए उस कार्मिक ने बताया कि भारत सरकार ने पहली बार काम फरवरी में रोका लेकिन उस समय भी कई प्रकार से काम जारी ही रहा। कोर्ट ने केंद्र के आदेश को रोक दिया तो यहां खूब शराब बंटी। लेकिन उसी कोर्ट ने फिर मई, 2009 में जब केंद्र के आदेश को बहाल कर दिया तो भी काम जारी रखा गया। इन पहाड़ों के गांवों में जाकर पूछिए तो असलियत मालूम चल जाएगी।
तो यह बानगी भर है कि मां गंगा के साथ किस प्रकार का छल एन.टी.पी.सी. के अधिकारी कर रहे हैं। संत-महात्मा परियोजना स्थल पर पहुंचते ही आग-बबूले हो उठे। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञानदास ने जब डम्परों-लोडरों और जे.सी.वी. मशीनों की कतारें और लगभग 400 मजदूरों-ठेकेदारों की भीड़ देखी तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने तुरंत परियोजना स्थल पर स्थित पर्यवेक्षकों से दनादन सवाल पूछ डाले। उन्होंने पूछा कि – ‘अगर उच्च न्यायालय ने स्थगनादेश दे रखा है तो ये मशीनें और मजदूर यहां क्या कर रहे हैं? इन डम्परों और मशीनों के टायर व लोडर बता रहे हैं कि ये कुछ ही घंटे पूर्व तक चालू हालत में रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि स्थगनादेश के बावजूद कार्य जारी रहने के गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने वहां उपस्थित प्रशासनिक अधिकारियों से कहा कि वे राज्य सरकार को तत्काल उच्च न्यायालय के आदेश की खुली अवहेलना के बारे में जानकारी दें। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की कि यद्यपि परियोजना केन्द्र की है किंतु न्यायपालिका के आदेश के स्थगनादेश के संदर्भ में उनका दायित्व बनता है कि वह आदेश का पालन सुनिश्चित करवाएं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री तत्काल उच्च न्यायालय के स्थगनादेश का क्रियान्वयन सुनिश्चित करें और यहां पर कार्यरत सभी मजदूरों और मशीनों को हटाएं।
महन्त ज्ञानदास यहीं पर नहीं रूके, उन्होंने उत्तराखण्ड सहित केन्द्र सरकार दोनों को लगे हाथ चेतावनी भी दे डाली कि अगर गंगा के प्रवाह के साथ खिलवाड़ बंद नहीं हुआ तो कुंभ के समय सरकार मुश्किल में पड़ जाएगी। अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्री हरिगिरि, आचार्य सभा के महामंत्री स्वामी परमात्मानंद सरस्वती, शड्दर्षन साधु समाज के महंत दर्शनपुरी महाराज समेत अनेक वरिश्ठ संतों महात्माओं ने इसका समर्थन किया। उल्लेखनीय है कि कुंभ मेले के आयोजन में अखाड़ों की भूमिका अति महत्वपूर्ण रहती है। महंत ज्ञानदास ने कहा कि सरकार कुंभ के समय समस्त अखाड़ों को लिखित रूप से शाही स्नान के लिए आमंत्रित करती है। यदि गंगा का प्रवाह अविरल-निर्मल रूप में हमें नहीं मिलता है तो फिर हमें इस पर विचार करना पड़ेगा कि हम सरकार के साथ किस भाषा में बात करें।
इस अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राश्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल, आचार्य सभा के महामंत्री स्वामी परमात्मानंद गिरि, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, अर्थशास्त्री एवं जनता पार्टी के अध्यक्ष डा. सुब्रहमण्यम स्वामी, विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री श्री जीवेश्वर मिश्र, श्री राजेन्द्र सिंह पंकज एवं साध्वी समर्पिता समेत बड़ी संख्या में गंगा भक्त उपस्थित थे।
पत्रकारों से बातचीत में विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने गंगा की दुर्दशा पर गहरी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि संपूर्ण गंगोत्री पथ पर विनाश का ताण्डव चल रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार ने इस क्षेत्र को हत्यारों के हवाले कर दिया है जो इस पूरे क्षेत्र की आध्यात्मिक शांति को लील रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार तत्काल यहां काम बंद कराए अन्यथा उसे संतों के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा। श्री सिंहल ने विशाल जलविद्युत परियोजनाओं पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि सरकार उर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर काम करे। श्री सिंहल ने उच्च न्यायालय के स्थगनादेश के बावजूद लोहारीनागपाला में काम जारी रहने पर अपनी गंभीर आपत्ति प्रकट की। पूर्व केंद्रीय विधि मंत्री एवं सुप्रसिध्द अर्थशास्त्री डॉ. सुब्रम्णयम स्वामी ने भी इसे न्यायालय की गंभीर अवमानना करार दिया और कहा कि वे शीघ्र इसके विरूद्ध न्यायालय में अवमानना याचिका दाखिल करेंगे।
लोहारीनागपाला से लौटकर उत्तरकाशी में सभी संतों और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र पर हस्ताक्षर किए। पत्र में प्रधानमंत्री को लोहारीनाग पाला में न्यायालय की अवमानना कर निर्माणकार्य जारी रखने की दशा से अवगत कराने के साथ मांग की गई कि लोहारीनागपाला समेत गंगा नदी पर निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित सभी जल विद्युत परियोजनाओं का तत्काल प्रभाव से सदा के लिए निरस्त किया जाए। भारत सरकार एवं पंडित मदन मोहन मालवीय के मध्य हुए ऐतिहासिक समझौते के अनुरूप गंगा के प्रवाह को अविरल और निर्मल रखने के लिए शीघ्र समुचित कदम उठाएं जाएं। सरकार को यह भी सुझाव दिया गया कि वह बड़े बांधों और विशालकाय जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना की बजाए विद्युत उत्पादन के लिए अन्य सस्ते विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करे।
रपट के साथ पूरक वक्तव्य-
लोहारीनाग पाला में हमारे प्रतिनिधि राकेश उपाध्याय के साथ विषेश बातचीत में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास, विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. सुब्रम्णयम स्वामी ने जो विचार प्रस्तुत किए, उसके संपादित अंश-
गंगा नहीं रहेंगी तो कुंभ कैसा – महंत ज्ञान दास (अध्यक्ष-अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद)
अशोक जी सिंहल के नेतृत्व में पूरा अखाड़ा परिषद एवं संत समाज यहां आया हुआ है। डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे विषेशज्ञ भी यहां उपस्थित हैं। यहां कर्मचारी लगभग 400 रह रहे हैं। गंगा की जो दुर्दशा हो रही है, वह अकल्पनीय है। गंगा के कारण हमारी संस्कृति है, इसी गंगा के कारण हमारी भारतीय परंपराएं जीवित रही हैं, इसी से हम आज तक प्राण वायु पाते आए हैं, आज उसी गंगा को लगभग मृतप्राय कर दिया गया है।
केन्द्र सरकार ने तो संतों को कहा था कि लोहारीनागपाला में काम रोक दिया गया है लेकिन यहां ये 400 मजदूर क्या कर रहे हैं? उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री से और केंद्र सरकार से हमारी यह प्रार्थना है कि इन्हें यहां से तत्काल हटाया जाए। यहां काम पर लगे लोगों को कहीं और काम दिया जाए। यहां के स्थानीय लोगों को कोई परेशानी न हो, इस बात का विषेश ध्यान रखा जाए। उनकी क्षतिपूर्ति का समुचित प्रबंध किया जाए।
हमें जानकारी मिली है और जैसा कि हम देख भी रहे हैं कि यहां काम अभी भी चल रहा है। मैं सरकार से कहना चाहता हूं कि चोरों जैसा व्यवहार न करे। हम आज आए हैं तो दिखाने के लिए सारा काम रोक दिया है लेकिन जैसा कि लोग बता रहे हैं कि हमारे जाते ही फिर से काम षुरू कर दिया जाएगा। तो हम संत-महात्मा स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम अब किसी धोखे में रहने वाले नहीं हैं। काम जारी रहा तो गंभीर परिणाम सामने आएंगे।
गंगा हमारी मां हैं और हम सरकार से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि गंगा को उसके नैसर्गिक रूप में जीवित रहने दिया जाए ताकि हम और हमारी संस्कृति भी जीवित रह सके।
सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि यदि गंगा जी को मृत नदी में बदल दिया गया तो हमारे तीर्थों और हमारे पर्वों पर इसका विपरीत असर पड़ेगा। यदि गंगा नहीं रही तो कुंभ आयोजन निरर्थक हो जाएंगे। इसका हमारे कुंभ पर, शाही स्नान पर पूरा दुश्प्रभाव पड़ेगा। यदि गंगा ही नहीं रहेंगी तो कुंभ कैसा। देश में केवल अखाड़े ही हैं जिन्हें सरकार की ओर से कुंभ के समय विधिवत् और लिखित रूप से निमंत्रण जाता है कि आप कुंभ में पधारें और शाही स्नान करें। अब जब हरिद्वार में गंगा का अविरल और नैसर्गिक प्रवाह ही नहीं आएगा तो हम संतों-महात्माओं को सोचना ही पड़ेगा कि हम सरकार से किस भाशा में बात करें।
हमारी सरकार से इस संदर्भ में मांग है कि वह गंगा का अविच्छिन्न, अविरल, निर्मल, कलकल प्रवाह सुनिश्चित करे और लाखों वर्शों से जो धारा बहती आई है उस धारा को सदा सर्वदा बनाए रखे। उसमें परिवर्तन की गलती कदापि न करे और जो गलती हुई है, उसे समय रहते दुरूस्त कर ले।
हम यह भी कहना चाहते हैं कि यदि हमारी मांगें नहीं मानी गई तो हम आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। कुंभ मेला स्वयं में एक विराट आंदोलन है। हमारी संस्कृति और हमारे धर्म पर जब-जब प्रहार हुए हैं, संतों ने समाज के साथ मिलकर कुंभ मेलों में भविश्य पथ का निर्धारण किया है। इस कुंभ में भी हम गंगा, गौ एवं श्रीराम जन्म भूमि की गौरव गरिमा की रक्षा के लिए निर्णायक कार्रवाई करेंगे।
उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना हुई है – डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी (पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं अध्यक्ष, जनता पार्टी)
गंगा के प्रवाह को नैसर्गिक रखे सरकार
उच्च न्यायालय के स्थगनादेश के बावजूद यहां काम चल रहा है। यह न्यायालय की खुली अवमानना है। हम इसके विरूध्द न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करेंगे। जहां तक सवाल विद्युत उत्पादन का है इसके बहुत सारे विकल्प हैं। लेकिन लगता है सरकार उन विकल्पों पर काम नहीं करना चाहती। संभव है कि उसमें लोगों को कमीशन आदि न मिले या कम मिले। केन्द्र सरकार को निश्चित रूप से विकल्प ढूंढना चाहिए। रामसेतु आंदोलन के समय भी सरकार यही सब कर रही थी। रोजगार मिलेगा, व्यापार बढ़ेगा, आर्थिक उन्नति होगी, आदि भ्रामक और मोहक नारे सरकार की ओर से उछाले गए। उस समय भी हमने विकल्प खोजने की बात की। हमने कहा कि विकल्प देश के लिए और ज्यादा लाभदायक है। हमने इसे तर्कपूर्ण ढंग से सिध्द भी किया। तब सरकार की बोलती बंद हो गई।
सरकार यहां पर भी बिजली के सवाल को लेकर जनता को गुमराह कर रही है। गंगा के प्रवाह को बिना रोके छोटी परियोजनाएं बनाकर अथवा गैस टरबाइन, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं आणविक ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं की स्थापना कर हम कहीं ज्यादा बिजली उत्पन्न कर सकते हैं। सरकार को ठीक समझना चाहिए कि गंगा मात्र नदी नहीं है। यह भारत की सभ्यता, संस्कृति, आध्यात्मिक परंपरा की प्राणवायु है। इसे ध्यान में रखते हुए गंगा को उसके नैसर्गिक रूप में बहने देना चाहिए।
मां गंगा के साथ गंगोत्री की हत्या का षडयंत्र – श्री अशोक सिंहल (अध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद)
‘गंगा की हत्या हो रही है, खुले आम हत्या हो रही है। कुछ लोग रोजगार का सवाल खड़ा कर रहे हैं। लेकिन मैं पूछता हूं कि क्या अपनी मां की हत्या कर रोजगार बढ़ाया जाता है? मैं देख रहा हूं कि किस निर्ममता से गंगा तट के पहाड़ों का विध्वंस हो रहा है। इन पहाड़ों के बारे में मान्यता है कि ये भगवान शिव के अंग हैं, भगवान के जटाजूट हैं। इन्होंने ही भागीरथी को सर्वप्रथम धरती पर धारण किया। आज इन्हें ही तोड़ा जा रहा है। क्या भारत इसे बर्दाष्त करता रहेगा? गंगोत्री जाने के संपूर्ण मार्ग पर हम विनाश का तांडव देख रहे हैं। कोई गंगोत्री जाए ही न, इस प्रकार की परिस्थिति बनाई जा रही है। गंगोत्री मार्ग का सारा नैसर्गिक सौंदर्य समाप्त किया जा रहा है। गंगा के कल-कल प्रवाह को देखकर प्राप्त होने वाले आनंद से संपूर्ण समाज को वंचित कर दिया गया है। ऐसा लगता है कि हत्यारे यहां आ गए हैं और चारों ओर विध्वंस लीला चल रही है। कोई पूछने वाला नहीं है कि ये सब किसके आदेश से किया जा रहा है? कुछ लोग उच्च न्यायालय गये और निर्माणकार्य रोकने का आदेश भी ले आए। फिर भी निर्माणकार्य जारी है और कोई पूछ तक नहीं रहा है।
गंगोत्री पथ का यह समूचा आध्यात्मिक क्षेत्र बारूदी विस्फोटकों की गंध से भर गया है। क्या ये सब सरकार और उसका पर्यावरण विभाग नहीं देख पा रहा है? न्यायालय की खुली अवमानना हो रही है। सरकार जब खुद डकैती डालने लग जाए, चोरी पर आमादा हो जाए तो फिर क्या किया जा सकता है। मैं केन्द्र सरकार पर आरोप लगाता हूं कि वह स्वयं डकैतों और चोरों जैसा अपराध कर रही है। इससे बड़ी गिरावट और क्या आ सकती है? मेरी मांग है कि तत्काल यहां काम बंद किया जाए। लाखों वर्शों से गंगा संपूर्ण समाज का पोशण करती आ रही है। कुछ करोड़ रुपये के लिए इसकी बलि नहीं दी जा सकती। कहा जा रहा है कि 500 करोड़ खर्च हो गए हैं, अब क्या हो सकता है? मेरा पूछना है कि गंगा एक्षन प्लान का 960 करोड़ रुपया सरकार ने कहां बहा दिया? क्यों गंगा आज भी प्रदूशित है?
मैं कहता हूं कि सवाल 500 करोड़ रुपये या हजार करोड़ रुपये का नहीं है। सवाल सरकार की नीति और नीयत का है। वर्तमान सरकार की न तो नीति ठीक है और न ही नीयत। इसलिए इनकी बनाई कोई योजना सफल नहीं हो रही है। विद्युत उत्पादन के बहुत से सस्ते विकल्प दुनिया में आज सफलतापूर्वक चल रहे हैं। एक विषेशज्ञ मुझसे मिले थे जिन्होंने गैस आधारित विद्युत उत्पादन के प्रयोग को सफलतापूर्वक स्थापित किया है। साढ़े तीन साल के अल्प समय में ही 1100 मेगावाट की दो-दो परियोजनाएं वे स्थापित कर सकने में समर्थ हैं। ऐसे प्रयोगधर्मी, उद्यमशील, पर्यावरणहितैशी लोग और विकल्प बहुत हैं लेकिन सरकार उन पर ध्यान क्यों नहीं देती है? मैं सरकार और उसके नीति निर्धारकों से निवेदन करता हूं कि वे विद्युत उत्पादन के विकल्पों को परखें और गंगा के प्रवाह को अविरल-निर्मल बना रहने दें।
मेरी सरकार से मांग है कि गंगा पर चल रही लोहारी नागपाला परियोजना समेत सभी परियोजनाएं हमेशा के लिए रद्द की जाएं। यहां काम पर जो लोग लगे हैं उनकी क्षति पूर्ति कर उनका पुर्नस्थापन किया जाए। गंगोत्री जाने वाली सड़क को सुंदर तरीके से निर्मित किया जाए ताकि उस पर सहजता से आवागमन हो सके। गंगोत्री मार्ग पर स्थित आध्यात्मिक महत्व के रमणीक स्थानों का समुचित विकास किया जाए ताकि यहां अधिक से अधिक लोग सुविधापूर्वक तीर्थाटन और पर्यटन का आनंद उठा सके। जो पहाड़ तोड़े गए हैं उनको फिर से हरा-भरा बनाया जाए।
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विकास इस रूप में होना चाहिए जिससे पर्यटन भी बढें ओर गंगा का प्रवाह भी अविरल रहे.....गंगा को प्रदुषण मुक्त करने के लिए किये जाने वाले प्रयासों में कमी नही होनी चाहिए...
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