Monday, December 21, 2009

ईश्वरत्व के नाते मैंने नाता तुमसे जोड़ा...

ईश्वरत्व के नाते मैंने नाता तुमसे जोड़ा...



कल मैंने देखा था तुम्हारी आंखों में प्यार का लहराता समंदर
उफ् कि मैं इन लहरों को छू नहीं सकता, पास जा नहीं सकता।।

कभी-कभी लगता हैं कि इंसान कितना बेबस और लाचार है
सोचता है मन कि आखिर क्यों बढ़ना है आगे, लेकिन कुछ तो है,
जो बार-बार जिगर उस डगर पर ला छोड़ता है उसे जहां कि
मन किसी से कुछ कहने के लिए बार-बार बेताब हो उठता है।






क्यों होता है ऐसा? क्या किसी ने जाना है कि कोई क्योंकर
रोज किसी के सपनों में आता है और मंद-मंद मुस्कानें भरता,
दो पल के लिए रूककर फिर दूर कहीं उड़ता चला जाता है?
सोचो तो बहुत पास है, देखो तो दूर दूर परछाई तक नहीं है।

दिल में तड़पन और एक मीठी सी छुअन किसी अजनबी के प्रति
आखिर क्यों उठ जाती है, जबकि हम जानते हैं कि रास्ते दोनों के,
हमेशा से अलग हैं और आगे भी अलग रहेंगे लेकिन फिर भी
एक ख्याल कौंधता सा है कि हम अलग हैं ही कहां, एक ही तो हैं।

किसी जनम की कोई लौ जलती है, वह लौ फिर से पास जाए
तो भला कोई कैसे पहचाने, कैसे जाने कि रिश्ते दोनों के कुछ गहरे हैं,
ये रिश्ते कम से कम वो तो नहीं है जिन्हें दुनियां-जहां ठीक ना समझे
ये तो आम समझ के ऊपर के रिश्ते हैं, कुछ रूमानी हैं तो कुछ रूहानी हैं।

इसीलिए इन आंखों में सदा ही प्यार का समंदर उमड़ता है जिनको मैंने
कल देखा था, उन आंखों में एकटक झांका था तो हूक सी उठी थी दिल में,
क्यों मुझ पर ही सवाल लगा दिया तुमने, क्यों ठुकरा दिया था तुमने जबकि
मैंने तो तुमको अपना ही माना था, कल भी, आज भी, सदा ही, सदा के लिए।

रिश्ते इंसानी ही नहीं है, इंसानी रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं लेकिन जो रिश्ते
फरिश्तों ने बनाए, जिनके गीत ह्दय के किसी कोने ने गुनगुनाए और जहां,
शरीर के सुख से ऊपर की कुछ चीज है, जहां ईश्वरत्व की कुछ सीख है
उस रिश्ते से मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा, रूहानी प्यार की खातिर नाता जो़ड़ा।

अपने मन के संगीत को सुनोगे दिल की गहराई से तुम तो शायद
इस गहराई को समझ सकोगे, नहीं तो केवल और केवल संदेहों-
आशंकाओं के गहराते बादलों में ही घूमते रहोगे, नहीं समझ सकोगे
कि क्या सचमुच यह प्यार सच्चा है, मन-ह्दय इसका क्या सीधा-साधा है।

आज भी देखा कि प्यार का समंदर तुम्हारी आंखों में लहरा रहा
काश कि मैं इन लहरों को कहीं तो छू सकता, कहीं तो पा सकता।



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Your's
Rakesh Upadhyay
http://vicharvaruna.blogspot.com/

2 comments:

  1. Roomani bhavon ki bahut hi sundar abhivyakti...Waah !!!

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  2. आपका ये नया रूप देखा... अच्छा लगा!

    ईश्वरत्व भी तो अनूठा खयाल है! प्रेम साकार हो या निराकार, अगर सच्चा है तो उसकी परिणति प्रेयस के ईशवरत्व में ही हो सकती है.. ये वही भाव है, जिसके वशीभूत होकर कोई प्रेम दीवानी जहर का प्याला पी जाती है, कोई सोहनी कच्चा घड़ा लेकर ही नदी पार करने निकल जाती है तो कोई बिस्मिल फाँसी का फंदा चूम लेता है.. प्रेम व्यथा वही है, बस इस व्यथा का प्रत्यक्षीकरण विभिन्न प्रतिरूपों में होता है।

    सच ही कहा है-

    नहीं समझी ये दुनिया मसलहत मंसूर की अबतक
    जो सूली पर भी हंसना मुस्कराना ढूँढ लेती है
    हक़ीकत ज़िद किये बैठी है चकनाचूर करने को
    मगर हर आँख फिर सपना सुहाना ढूँढ लेती है..

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