Wednesday, February 17, 2010
कलयुग में सतयुग की आहट
शिक्षा प्राप्त करने के लिए शुल्क! हाय यह, कैसे दिन हिंदुस्तान को देखने पड़े। जिस देश में नौनिहालों को शिक्षा देनेका कार्य सदियों तक समाज आधारित रहा है, जहां शिक्षा के लिए कभी कोई पैसा नहीं, कोई प्रतिबंध नहीं, कोईभेदभाव नहीं रहा, उस कृष्ण-सुदामा के गुरुकुलों को एक बार फिर से कर्नाटक में जीवित कर दिखाया है कुछसाहसी ह्दयों ने। ऐसे महान प्रेरक कार्यों का अनुकरण आज पूर देश के लिए जरूरी हो गया है।
कर्नाटक के मंगलुरू जिले में केरल सीमा के करीब एक छोटा सा गांव है मुरकजे। मंगलुरू से 40-50 कि.मी. दूर हैविट्ठला और विट्ठला से कोई चार-पांच कि.मी. दूर है मुरकजे। इसी गांव में नारियल और सुपाड़ी के वृक्षों के घनेवन के बीच परमेश्वरी अम्मा की छोटी सी कुटिया में ‘सतयुग’ मानो वापस लौट आया है। परमेश्वरी अम्मा अब नहींरहीं लेकिन उनके आंगन में जिस प्रकार से वैदिक ऋचाएं गूंज रही हैं, वह भारतीय समाज जीवन के अमर औरअविनाशी जीवनी शक्ति का प्रेरक दृष्टांत है।
कुछ वर्ष पहले की बात है। देश में स्त्रियों के वेद पढ़ने या न पढ़ने के प्रश्न पर विवाद उत्पन्न हो गया था। यह विवाददिल्ली सहित देश के तमाम स्थानों पर जहां बौद्धिकों में वाद-विवाद का विषय बना हुआ था वहीं इस विवाद कीआंच से दूर मुरकजे के सुरम्य और रमणीक वातावरण में एक-दो नहीं वरन् सैकड़ों की संख्या में कन्याओं ने नसिर्फ वेद पाठ को अपने दैनिक जीवन का अंग बना लिया वरन् वे वैदिक वांग्मय के अनुरूप जीवन यापन करने कीदिशा में भी अग्रणी बन गईं।
परमेश्वरी अम्मा मुरकजे गांव की रहने वाली थीं। सन् 1997 में उनका शरीरांत हुआ किंतु इसके पूर्व अपने भतीजेवेंकट रमण भट्ट की प्रेरणा से उन्होंने अपनी सारी संपत्ति, सैकड़ों एकड़ भूमि कन्याओं के गुरुकुल के लिए दान करदी। कन्याओं को वेदशिक्षा देने वाले मैत्रेयी गुरुकुल की स्थापना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्रीकृष्णप्पा और सीताराम केदिलाय के प्रयासों से 1994 में बंगलुरू में हो गई थी। सन् 1999 में परमेश्वरी अम्मा केसंकल्प के कारण वह गुरुकुल उनके गांव और घर में स्थानांतरित हो गया। संप्रति 101 कन्याएं पूरे समय रहकरवेदशिक्षा के साथ गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, कंप्यूटर सहित सभी विषयों का अध्ययन कर रही हैं।
और अनेक अर्थों में अभिनव है यह गुरुकुल। बेटियों के लिए 6 वर्षीय आवासीय पाठ्यक्रम। निवास, भोजन के साथछः साल की यह शिक्षा पूर्णतया निःशुल्क। आधुनिक शिक्षा प्रणाली के अनुसार पांचवी कक्षा से यहां कन्याओं काप्रवेश होता है, दसवीं श्रेणी की शिक्षा पूर्णकर वे अपने घर अथवा उच्च शिक्षा के लिए अन्यत्र जा सकने को स्वतंत्रहो जाती हैं।
यहां शिक्षा पंचमुखी प्रणाली से दी जा रही है। पंचमुखी अर्थात पांच आयामों वाली शिक्षा प्रणाली जिसमें वेद शिक्षा, आधुनिक शिक्षा अर्थात् विज्ञान, गणित, अंग्रेजी, हिंदी, कन्नड़, संस्कृत, भूगोल आदि विषय, योग, सावयव्य कृषिअर्थात जैविक कृषि जिसमें ग्राम विकास के विविध प्रयोगों व तरीकों का प्रशिक्षण भी समाहित है, के साथप्राथमिक चिकित्सा, कंप्यूटर व अन्य तकनीकी विषयों की अनिवार्य शिक्षा शामिल है। इस गुरूकुल में कन्याएंअपनी स्वरूचि से पेंटिग्स यानी चित्रकला, गायन-वादन यानी संगीत, बांसुरी, ढोलक, तबला, सितार आदि वाद्यों कोबजाने, नृत्य-नाट्य-खेल आदि के बारे में भी शिक्षण प्राप्त करती हैं।
मुरकजे में आधुनिक विज्ञान के शिक्षण के लिए कणाद नामक प्रयोगशाला है तो महर्षि भारद्वाज को स्मरण करतेहुए कंप्यूटर लैब भी यहां पर है। प्रशिक्षण का कार्य सुयोग्य शिक्षिकाओं के निर्देशन में वरिष्ठ छात्राएं स्वयं ही करतीहैं। जिज्ञासा नामक पुस्तकालय, निरामया नामक चिकित्सा कक्ष और कन्याओं के निवास तथा अध्ययन के लिएयहां विश्ववारा, गार्गी, अराधना, सुनैना, चुड़ाला आदि अनेक वैदिक देवियों के नाम पर रखे गए कुटिया स्वरूप सुंदरभवन स्थापित किये गए हैं। संपूर्ण परिसर की देखभाल करने के लिए पांच गृहस्थ परिवार भी यहीं पर पूरे समयनिवास करते हैं।
प्रतिदिन प्रातःकाल 5 बजे से गुरूकुल की दिनचर्या प्रारंभ हो जाती है। योगाभ्यास, प्राणायाम आदि सभी के लिएअनिवार्य। प्रातःकाल ही पंचायतन पूजा जिसमें शिव-विष्णु-गणेश-सूर्य एवं दुर्गा की आराधना की जाती है।जलपान आदि के पश्चात् कक्षाओं का प्रारंभ वैदिक मंत्रों एवं श्रीमद्भगवद्गीता के सामूहिक पाठ से होता है। परिसर केमध्य भारतमाता की अलौकिक प्रतिमा सभी के मन में सदैव मातृभूमि का पवित्र स्मरण कराती रहती है।
सायंकाल का समय यहां किसको न प्रफुल्लित कर दे। बागवानी और कृषि कार्य में सभी कन्याएं समवेत जुटती हैं।उनके श्रम-सीकर के कारण आश्रम के विशाल परिसर में ही व्यापक पैमाने पर सुपाड़ी, वनिला, केला, नारियलआदि फलदार वृक्ष लहलहा उठे हैं। इसी के साथ गोशाला की भी देखभाल में भी कन्याएं ही हाथ बंटाती हैं। इन सभीकार्यों में प्रमुख रूप से मातृश्री अर्थात प्रशिक्षक माताएं कदम-कदम पर कन्याओं को मार्गदर्शन और प्रेमपगाप्रशिक्षण प्रदान करती हैं। बागवानी और कृषि के बाद बारी आती है खेल और मस्ती की बेला की। फिर तो पूराआश्रम ही उछल-कूद, उत्साह और आनन्द से सराबोर हो उठता है।
उडुपी की रक्षिता, बागलकोट की सहना, शिवमोगा की वत्सला, बंगुलुरू की अपर्णा, हासन की स्वाती से हम मिले।ये सभी यहां की वरिष्ठ छात्राएं हैं। सभी को उनके अभिभावकों ने गुरूकुल में पांचवी कक्षा में भर्ती कराया। आज कोईदसवीं में है तो कोई नवीं और आठवीं में। सभी को यहां रहने और पढ़ने का आनन्द भाता है। वेदमंत्रों और गीता केश्लोकों का सस्वर पाठ करने में सभी एक से एक बढ़कर। ध्यान से कोई मंत्र सुने तो ध्यान में जाए बिना ना रहे।ग्रीष्म अवकाश में ये कन्याएं अपने गांव और घर चली जाती हैं लेकिन सावन में व्यास पूर्णिमा यानी गुरुपूजा केदिन इन्हें फिर से वापस आना होता है। बीच-बीच में अभिभावक यहां आते-जाते हैं। कई तो यहां रहकर कुछ समयतक जैविक कृषि आदि का शिक्षण भी लेते हैं।
संपूर्ण कार्य समाज के सहयोग से, ग्रामों और धार्मिक शुभेच्छुओं के बूते चल रहा है। किसी छात्रा से कोई शुल्कनहीं। ये बात दीगर है कि यदि किसी छात्रा के अभिभावक सहयोग करना चाहते ही हैं तो उनसे उन्हीं की इच्छा केअनुरूप सामग्री का सहयोग ले लिया जाता है।
और अब गुरुकुल से निकलकर सामाजिक क्रांति की यह बयार आन्ध्र प्रदेश,केरल और कर्नाटक के गांवों को गहराईसे स्पर्श करने लगी है। कुछ उदाहरण देखने-सुनने लायक हैं। कर्नाटक के बीजापुर जिले के इंडी तालुके का एकगांव है-गुदूवाना। यहां लिंगायती समुदाय का प्रभुत्व है। इसी समुदाय से जुड़े एक परिवार की कन्या ज्योति सन्में गुरूकुल से पढ़ाई पूरी कर अपने गांव पहुंची। गांव में उसने अपने माता-पिता को विधिपूर्वक पूजा-पाठकरना सिखाया, घर में उसके बाबा जो कभी उसके गुरूकुल जाने को लेकर नाराज़ थे, घर में नित्य वेदमंत्रों का पाठहोता देख आनन्दमग्न हो उठे। पारिवारिक वातावरण में संस्कृत भाषा का रह-रहकर प्रयोग होने लगा औरवातावरण सुसंस्कृत हो उठा। गुरुकुल की यह प्रेरणा कि शिक्षा समाज के लिए, का अनुकरण करते हुए ज्योति नेगांव में स्कूल न जाने वाली कम उम्र की बालिकाओं को पढ़ाने का भार खुद पर ले लिया। परिणामस्वरुप गांव मेंबालिक शिक्षा के प्रति सामान्य जनों में स्वतः ही जागरुकता आ गई।
कुछ ऐसा ही देखने को मिला चित्रदुर्ग जिले के मडकालमोरु तालुके के कोंडलाहल्ली गांव में। गांव के एक कृषकपरिवार की शकुन्तला वेद समन्वित आधुनिक शिक्षा का छःवर्षीय पाठ्यक्रम पूर्णकर जब अपने गांव पहुंची तोपरिवार के लोगों को लगा कि इतना पढ़ने-लिखने के बाद अब यह गांव पर रहकर क्या करेगी। लेकिन शकुंतला नेजब अपने ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग दिखाना शुरू किया तो लोगों के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। गुरूकुल मेंउसने जैविक खेती के जो प्रयोग सीखे थे उसे वह गांव के अपने खेत में आजमाने लगी। इससे न केवल उत्पादन मेंवृद्धि हुई वरन् अन्न, सब्जियों और फलों के मूल्य भी बेहतर प्राप्त हुए, रसायनों और उर्वरको का प्रयोग नगण्य होगया। उसके प्रयोग देखकर गांव के अन्य लोग भी जैविक खेती की ओर आकर्षित हुए।
मैत्रेयी गुरुकुल में पढ़ी-लिखी वैशाली का विवाह चिकमंगलुर जिले के होरानाडु गांव के सुप्रसिद्ध धर्माधिकारी के बेटेसे हुआ। गांव और आस-पास के सुप्रसिद्ध अन्नपूर्णादेवी शक्तिस्थल के उक्त धर्माधिकारी के आश्चर्य का ठिकाना नारहा जब एक दिन उन्होंने देखा कि उनकी बहू वेदमंत्रों का विधिपूर्वक पाठ तो करना जानती ही है, उसे यज्ञ आदिकर्मकाण्डों को सुयोग्य रीति से सम्पन्न करा सकने में भी महारत प्राप्त है। वह घर के सभी कार्यों को भली प्रकार सेनिपटाकर अन्य सदस्यों को अंग्रेजी अखबार का वाचन कर उसका अर्थ भी समझाती है। परंपरा में पले-बढ़े परिवारको एक सुसंस्कारित और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान में पारंगत वधू प्राप्त हुई, इससे बढ़कर खुशी की बात और क्या होसकती है।
हासन के एक किसान परिवार की इकलौती कन्या काव्या गुरुकुल के दूसरे सत्र में पढ़ने के लिए आई। शिक्षा पूर्णकरने के उपरांत उसने तकनीकी शिक्षा के उच्च ज्ञान के लिए एक आईटीआई में दाखिला लिया। उसके बाद उसनेबंगलुरु के एक संस्थान में नौकरी प्रारंभ की। उसने अपने गरीब मां-बाप को सहारा दिया और विवाह करने के बादअपने पति को भी कदम-कदम पर सहयोग करने लगी। गुरूकुल मे ली गई प्रतिज्ञा के अनुरूप उसने स्कूल न जानेवाली बालिकाओं को भी स्वैच्छिक रुप से पढ़ाने का काम किया, आज वह बंगलुरु में नौकरी के साथ गली-मुहल्लेके बच्चों के लिए चलने वाले झोला पुस्तकालय का काम संभालने में अग्रणी है।
मैसूर के एक डिग्री कालेज में आज ज्योतिष की शिक्षा दे रही निवेदिता को कभी स्वप्न में भी यह भान नहीं था किएक दिन वह अपने क्षेत्र में विदुषी नारी के रूप में जानी और पहचानी जाएगी। गुरूकुल ने उसका जीवन बदल कररख दिया। गुरुकुल की शिक्षा पूरी करने के बाद उसने संस्कृत और ज्योतिष के विषय में शिक्षा का क्रम जारी रखा, साथ में अंग्रेजी के ज्ञान को भी और प्रखर किया। संयोग से उसका विवाह भी एक संस्कृत शास्त्री से हुआ और अबदोनों मिलकर सुखपूर्वक जीवन की गाड़ी आगे बढ़ा रहे हैं।
यही नहीं तो, गुरुकुल की दर्जनों कन्याएं न केवल संस्कृत-ज्योतिष-धर्मशास्त्र-शिक्षाशास्त्र के क्षेत्र में उच्च शिक्षाप्राप्त करने के कार्य में जुटी हैं वरन् इंजीनियरिंग, आयुर्वेद, संगीत, हिंदी, अंग्रेजी और कन्नड़ साहित्य के क्षेत्र में भीअनेक छात्राओं ने परिणामकारी कार्य कर दिखाए हैं। गुरुकुल ने संपूर्ण मंगलुरू जनपद के ग्राम-ग्राम में बालगोकुलम् के कार्यक्रम लोकप्रिय कर दिए हैं। हजारों की संख्या में इन गोकुलम् में बच्चे और उनकी माताएं जुटती हैंऔर उनके बीच भांति-भांति के संस्कारप्रद कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
आज कर्नाटक के गांवों में गुरुकुलों की ख्याति बढ़ चली है। मंगलुरू का मैत्रेयी गुरुकुल जहां केवल कन्या शिक्षा सेजुड़ा है वहीं श्रृंगेरी के पास स्थित प्रबोधिनी गुरुकुल और बंगलुरू के पास चेन्ननहल्ली गांव में स्थित वेद विज्ञानगुरुकुल ने गुरुकुल प्रणाली को एक बार फिर उसके मूल स्वरूप में जागृत कर दिया है। ग्राम-ग्राम के लोग अपनेबालकों और बालिकाओं को गुरुकुल में पढ़ते देखना चाहते हैं जहां शिक्षा व्यापार नहीं वरन् आज भी समाज कासंस्कार बनी हुई है।
2006
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